लग्जरी टैक्स एक अप्रत्यक्ष टैक्स है, जो मुख्यतः ऐसी सेवाओं और उत्पादों पर लगाया जाता है जो आराम, आनंद, और विलासिता का अनुभव प्रदान करते हैं। यह टैक्स आमतौर पर होटल, स्पा, ब्यूटी पार्लर, हेल्थ क्लब और रिसॉर्ट्स में दी जाने वाली सेवाओं पर लागू होता है।
उदाहरण: यदि आप किसी होटल में ठहरते हैं और कमरे का किराया ₹1000 प्रतिदिन है, तो उस पर 12.5% टैक्स लगाया जा सकता है।
किन चीजों पर लगता है यह टैक्स?
होटल और रिसॉर्ट्स: कमरे के किराए के आधार पर टैक्स दरें अलग-अलग होती हैं।
स्पा और ब्यूटी पार्लर: इन सेवाओं पर सालाना 3% टैक्स लगाया जा सकता है।
स्विमिंग पूल और हेल्थ क्लब: इन सुविधाओं के उपयोग पर भी टैक्स देना होता है।
क्लब और मेंबरशिप: क्लब मेंबरशिप चार्ज और अन्य फीस पर भी टैक्स लागू होता है।
भारत में लग्जरी टैक्स का इतिहास
1996 में शुरुआत: हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री से राजस्व जुटाने के लिए लागू।
2009 में संशोधन: होटल आवास शुल्क पर 12.5% की एक समान दर तय की गई।
2017 से GST में शामिल: अब यह GST के तहत आता है और सबसे उच्चतम स्लैब 28% में रखा गया है।
विभिन्न राज्यों में टैक्स की दरें
भारत के अलग-अलग राज्यों में यह टैक्स अलग-अलग दरों पर लागू होता है।
दिल्ली: कमरे के किराए पर 5% से 10% टैक्स।
राजस्थान: ₹3000 से अधिक किराए पर 8% और अन्य होटलों पर 10%।
कर्नाटक: ₹500-₹1000 किराए वाले कमरे पर 4%, और ₹2000 से अधिक किराए पर 12%।
गोवा: ₹500 तक के किराए पर छूट, ₹500-₹2000 किराए पर 5% टैक्स।
तमिलनाडु: ₹200 से कम किराए पर कोई टैक्स नहीं, ₹1000 से अधिक किराए पर 12.5%।
क्यों लगाया जाता है यह टैक्स?
लग्जरी टैक्स का उद्देश्य सरकार के लिए राजस्व जुटाना है। यह टैक्स मुख्यतः उन सेवाओं पर लागू होता है जो केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए होती हैं। हालांकि, अब यह कई आम सेवाओं पर भी लागू हो गया है, जिससे यह सभी वर्गों को प्रभावित करता है।
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भारत में लग्जरी टैक्स अब GST के तहत आता है और इसे राज्यों के अनुसार अलग-अलग दरों पर लागू किया जाता है। यह टैक्स उन सेवाओं पर लगाया जाता है, जो लोगों के जीवन में विलासिता और आनंद प्रदान करती हैं। इससे सरकार को राजस्व तो मिलता ही है, साथ ही आर्थिक असमानता को भी थोड़ा संतुलित करने का प्रयास किया जाता है।