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कोलकाता रेप-मर्डर केस: क्यों नहीं दी गई फांसी की सजा?
पश्चिम बंगाल 6 3 months ago

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में महिला ट्रेनी डॉक्टर से दुष्कर्म और हत्या के मामले में मुख्य आरोपी संजय रॉय को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस सजा के तहत उसे ताउम्र जेल में रहना होगा। हालांकि, घटना की क्रूरता को देखते हुए जनता में यह सवाल उठ रहा है कि जब आरोपी ने क्रूरता की हदें पार कीं, तो उसे फांसी की सजा क्यों नहीं दी गई।

कोर्ट का निर्णय:
जज अनिरबन दास ने अपने फैसले में कहा कि यह केस ‘‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’’ की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए आरोपी को मौत की सजा नहीं दी जा सकती। इसके बजाय उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।

रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस का मापदंड:
भारतीय कानून में ‘‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’’ उन मामलों को कहा जाता है, जहां अपराध की गंभीरता, पीड़ित के साथ हुई क्रूरता और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभाव को ध्यान में रखा जाता है।

मौत की सजा केवल उन मामलों में दी जाती है, जहां अपराधी के सुधार की संभावना शून्य हो।
न्यायालय को यह देखना होता है कि क्या अपराध समाज और न्याय व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है।
क्या था संजय रॉय का अपराध?
अपराध स्थल: आरजी कर मेडिकल कॉलेज का सेमिनार हॉल।
अपराध: महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या।
आरोप: भारतीय दंड संहिता की धारा 64, 66, और 103 (1)।
कोर्ट में अभियोजन और बचाव के तर्क:
सीबीआई के वकील:

यह अपराध समाज को झकझोरने वाला है और ‘‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’’ श्रेणी में आता है।
संजय रॉय को अधिकतम सजा (मृत्युदंड) मिलनी चाहिए।
संजय रॉय के वकील:

अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असमर्थ रहा कि आरोपी के सुधार की कोई संभावना नहीं है।
कानून के अनुसार फांसी के बजाय उम्रकैद पर्याप्त सजा है।
फांसी की सजा क्यों नहीं दी गई?
अदालत ने माना कि यह अपराध जघन्य है, लेकिन ‘‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता।
न्यायालय ने आरोपी के सुधार की संभावना को ध्यान में रखते हुए उम्रकैद का फैसला सुनाया।
जनता की प्रतिक्रिया और न्यायपालिका का संतुलन:
घटना के बाद देशभर में आक्रोश देखने को मिला था। हालांकि, न्यायपालिका का दृष्टिकोण अपराध की गंभीरता और अपराधी के भविष्य की संभावना पर आधारित होता है।

जनता का गुस्सा इस बात पर है कि ऐसी घटनाओं पर कठोरतम सजा (मृत्युदंड) क्यों नहीं दी जाती।
न्यायपालिका का मानना है कि सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि सुधार की संभावना को भी देखना है।

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